Wednesday, October 22, 2008

चल दिया अपने मिशन पर चंद्रयान

चल दिया अपने मिशन पर चंद्रयान
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी

चल दिया अपने मिशन पर चंद्रयान
हिंद की अज़मत का यह है एक निशान

कारनामा है यह इसरो का अज़ीम
हैँ सभी साँइंसदाँ जिसके महान

कामयाबी है यह एक तारीख़ साज़
मुल्को मिल्लत की बढाई जिसने शान

जश्न का माहौल है एक हर तरफ
हैँ प्रफुल्लित बच्चे बूढे और जवान

हीलियम की यह करेगा जुसतजू
जिसके होने का वहाँ पर है गुमान

आज है विज्ञान को उसकी तलाश
जिसका है क़ुर्आन मेँ वाज़ह बयान

है मुसख़्खर इब्ने आदम के लिए
चाँद, मंगल, और यह सारा जहान

सब से अशरफ आज है नौए बशर
इस लिए है हर मिशन में कामरान

हो जुनूने आगही बर्क़ी अगर
कोई भी मुशकिल नहीँ है इम्तेहान

Thursday, September 11, 2008

NAZM : INTEZAR




NAZM : INTEZAAR
Dr.AHMAD ALI BARQI AZMI

Gulbadan ghunch dahan zohra jabeen rashk e qamar

Lalah ru , maahlaqa,ghairat e sad lal o guhar

Aye meri jan e ghazal, aye meri manzoor e nazar

Ilteja tujhse yahi hai meri ba deeda e tar

Aa ki har lamha teri yaad mein jalta hai jigar

Aye meri jaan e ghazl aye meri manzoor e nazar

Hai tere dam se mere gulshan e hasti mein bahaar

Tu jo aa jaaye mera ghar ho gulistab bakenaar

Qabil e deed hai tere rukh e gulgoon ka nikhaar

Teri furqat mein nahin hai mujhe ek lamha qaraar

Mujhse milne mein too ab bahr e khuda der na kar

Aye meri jaan e ghzal aye meri manzoor e nazar


Hai tere gesu e mushkin se faza itar badosh

Tere dilkash lab o rukhsaar hain gharatgar e hoosh

Main hoon mushtaq e mulaqat basad josh o kharosh

Tujhse milne ki tamanna mein hai way eh aaghosh

Aa bhi jaa meri tamannaon ka ab khoon na kar

Aye meri jaan e ghazal aye meri manzoor e nazar

Saturday, September 6, 2008

Poetic Comment On "Ek Manzoom Afsana" by Rafi Tabassum

Aapka tarz e bayan hai khushgawar
Hai yeh afsanah nehaayat dilfegaar
kijiye aisa tareeqah akhteyaar
ho na "Sultanah kabhi bhi ashkbaar
hai zaroori fikro fan ka imtezaaj
ta ki ho yek kaam fakhr e rozgaar
Ho rahi hai masnavi maadoom ab
jo kabhi thi logon ke dil ka qaraar
jari rakhiye aap is takhleeq ko
Ta ki haasil kar sakein yeh iftekhaar
log pochhein yeh "Tabassum kaun hai
Jiska hai BARQI yeh adabi shaahkaar

Dr.Ahmad Ali Barqi Azmi

محترم رفیع تبسم صاحب
آداب و تسلیمات


آپ کا طرز بیاں ھے خوشگوار
ھے یہ افسانہ نھایت دلفگار
کیجئے ایسا طریقہ اختیار
ھو نہ" سلطانہ"کبھی بھی اشکبار
ھے ضروری فکروفن کا امتزاج
تا کہ ھو یہ کام فخر روزگار
ھورھی ھے مثنوی معدوم اب
جو کبھی تھی لوگوں کے دل کا قرار
جاری رکھئے آپ اس تخلیق کو
تاکہ حاصل کر سکیں یہ افتخار
لوگ پوچھیں یہ "تبسم" کون ھے
جس کا ھے برقی یہ ادبی شاھکار

ڈاکٹر احمدعلی برقی اعظمی

Friday, August 22, 2008

GHAZAL :DR.AHMAD ALI BARQI AZMI



GHAZAL

DR.AHMMAD ALI BARQI AZMI

Jalwagah e husn e fitrat hai nishan e zindagi

Su e manzil gamzan hai karwan e zindagi

Mahram e raz e azal hain rahrawan e raah e shauq

Ahl e dil jo hain samajhte hain zaban e zindagi

Hai junoon e inteha e shauq mera khizr e raah

Haath mein hai jiske ab meri kamaane e zndagi

Ek gham ho to bataaun tujhse main aye hamnashin

Lamha lamha de raha hoon imtehaan e zindagi

Ek toofan e hawadis aa rahaa hai baar baar

Ud na jaaye sar se mere saibaan e zindagi

Muntashir hai ab kitaab e zindagi ka har waraq

Hai mera sooz e duroon sharh e bayaan e zindagi

Rang jab layega mazloomon ki aanhoon ka asar

Gir padega us ke sar par aasmaan e zindagi

Zulm ka Ahmad Ali ho jaayega suraj ghuroob

Koi phir hoga na uska nauha khwan e zindagi

Sunday, August 10, 2008

ग़ज़ल





ग़ज़ल
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
सफर नया ज़िंदगी का तुमको न रास आए तो लौट आना
फेराक़ मे मेरे नीँद तुमको अगर न आए तो लौट आना
नहीँ है अब कैफ कोई बाक़ी तुम्हारे जाने से ज़िंदगी मेँ
तुम्हेँ भी रह रह के याद मेरी अगर सताए तो लौट आना
तेरे लिए मेरा दर हमेशा इसी तरह से खुला रहेगा
अगर कभी वापसी का दिल मेँ ख़याल आए तो लौट आना
बग़ैर तेरे बुझा बुझा है बहार का ख़ुशगवार मंज़र
तुझे भी यह ख़ुशगवार मंज़र अगर न भाए तो लौट आना
तुम्हारी सरगोशियाँ अभी तक वह मेरे कानोँ मेँ गूँजती हैँ
हसीन लमहा वह ज़िंदगी का जो याद आए तो लौट आना
ग़ज़ल सुनाऊँ मैँ किसको हमदम कि मेरी जाने ग़ज़ल तुम्ही हो
दोबारा वह नग़मए मोहब्बत जो याद आए तो लौट आना
ख़याल इसका नहीँ कि दुनिया हमारे बारे मेँ क्या कहेगी
जो कोई तुमसे न अपना अहदे वफ़ा निभाए तो लौट आना
है दिन मेँ बे कैफ क़लबे मुज़तर बहुत ही सब्र आज़मा हैँ रातेँ
तुम्हेँ भी ऐसे मे याद मेरी अगर सताए तो लौट आना
तुझे भी एहसास होगा कैसे शबे जुदाई गुज़र रही है
सँभालने से भी दिल जो तेरा संभल न पाए तो लौट आना
कभी न तू रह सकेगा मेरे बग़ैर बर्क़ी मुझे यक़ीँ है
ख़याल मेरा जो तेरे दिल से कभी न जाए तो लौट आना

Ghazal

Ghazal

Dr. Ahamad Ali Barqi Azmi

safar naya zindagi ka tumako n ras aae to laut aana

feraq me mere nind tumako agar n aae to laut aana

nahin hai ab kaif koee baqi tumhare jane se zindagi men

tumhen bhi rah rah ke yad meri agar satae to laut aana

tere lie mera dar hamesha isi tarah se khula rahega

agar kabhi vapasi ka dil men khayal aae to laut aana

bagair tere bujha bujha hai bahar ka khushagavar manzar

tujhe bhi yah khushagavar manzar agar n bhae to laut aana

tumhari saragoshiyan abhi tak vah mere kanon men goonjati hain

hasin lamaha vah zindagi ka jo yad aae to laut aana

gazal sunaoon main kisako hamadam ki meri jane gazal tumhi ho

dobara vah nagamae mohabbat jo yad aae to laut aana

khayal isaka nahin ki duniya hamare bare men kya kahegi

jo koee tumase n apana ahade vafa nibhae to laut aana

hai din men be kaif qalabe muzatar bahut hi sabr aazama hain raten

tumhen bhi aise me yad meri agar satae to laut aana

tujhe bhi ehasas hoga kaise shabe judaee guzar rahi hai

sanbhalane se bhi dil jo tera sanbhal n pae to laut aana

kabhi n too rah sakega mere bagair Barqi mujhe yaqin hai

khayal mera jo tere dil se kabhi n jae to laut aana

Friday, July 25, 2008

आज की ग़ज़ल डा.अहमद अली वर्की की ग़ज़लें और परिचय


आज की ग़ज़ल .
समकालीन ग़ज़ल को समर्पित मंच
FRIDAY, JULY 18, 2008
डा.अहमद अली वर्की की ग़ज़लें और परिचय











25 दिसंबर 1954 को जन्मे डा. अहमद अली 'बर्क़ी' साहब तबीयत से शायर हैं.

शायर का परिचय ख़ुद बक़ौल शायर :

मेरा तआरुफ़

शहरे आज़मगढ है बर्क़ी मेरा आबाई वतन
जिसकी अज़मत के निशां हैं हर तरफ जलवा फेगन

मेरे वालिद थे वहां पर मर्जए अहले नज़र
जिनके फ़िक्रो— फ़न का मजमूआ है तनवीरे सुख़न

नाम था रहमत इलाही और तख़ल्लुस बर्क़ था
ज़ौफ़ेगन थी जिनके दम से महफ़िले शेरो सुख़न

आज मैं जो कुछ हूँ वह है उनका फ़ैज़ाने नज़र
उन विरसे में मिला मुझको शऊरे —फिकरो —फ़न

राजधानी देहली में हूँ एक अर्से से मुक़ीम
कर रहा हूँ मैं यहां पर ख़िदमते अहले वतन

रेडियो के फ़ारसी एकाँश से हूँ मुंसलिक
मेरा असरी आगही बर्क़ी है मौज़ूए सुख़न .


डा. अहमद अली बर्की़ आज़मी साहब की तीन ग़ज़लें

१.









सता लें हमको, दिलचस्पी जो है उनकी सताने में
हमारा क्या वो हो जाएंगे रुस्वा ख़ुद ज़माने में

लड़ाएगी मेरी तदबीर अब तक़दीर से पंजा
नतीजा चाहे जो कुछ हो मुक़द्दर आज़माने में

जिसे भी देखिए है गर्दिशे हालात से नाला
सुकूने दिल नहीं हासिल किसी को इस ज़माने में

वो गुलचीं हो कि बिजली सबकी आखों में खटकते हैं
यही दो चार तिनके जो हैं मेरे आशियाने में

है कुछ लोगों की ख़सलत नौए इंसां की दिल आज़ारी
मज़ा मिलता है उनको दूसरों का दिल दुखाने में

अजब दस्तूर—ए—दुनिया— ए —मोहब्बत है , अरे तौबा
कोई रोने में है मश़ग़ूल कोई मुस्कुराने में

पतंगों को जला कर शमए—महफिल सबको ऐ 'बर्क़ी'!
दिखाने के लिए मसरूफ़ है आँसू बहाने में.


बहर—ए—हज़ज=1222,1222,1222,1222

२.









नहीं है उसको मेरे रंजो ग़म का अंदाज़ा
बिखर न जाए मेरी ज़िंदगी का शीराज़ा

अमीरे शहर बनाया था जिस सितमगर को
उसी ने बंद किया मेरे घर का दरवाज़ा

सितम शआरी में उसका नहीं कोई हमसर
सितम शआरों में वह है बुलंद आवाज़ा

गुज़र रही है जो मुझपर किसी को क्या मालूम
जो ज़ख़्म उसने दिए थे हैं आज तक ताज़ा

गुरेज़ करते हैं सब उसकी मेज़बानी से
भुगत रहा है वो अपने किए का ख़मियाज़ा

है तंग का़फिया इस बहर में ग़ज़ल के लिए
दिखाता वरना में ज़ोरे क़लम का अंदाज़ा

वो सुर्ख़रू नज़र आता है इस लिए 'बर्क़ी'!
है उसके चेहरे का, ख़ूने जिगर मेरा, ग़ाज़ा

बह्र—ए—मजत्तस= 1212,1122,1212,112
**
अमीरे शहर=हाकिम; सितम शआरी-=ज़ुल्म; हमसर= बराबर का

सितम शआर=ज़लिम, ग़ाज़ा=क्रीम, बुलंद आवाज़ा-=मशहूर


३.









दर्द—ए—दिल अपनी जगह दर्द—ए—जिगर अपनी जगह
अश्कबारी कर रही है चश्मे—ए—तर अपनी जगह

साकित—ओ—सामित हैं दोनों मेरी हालत देखकर
आइना अपनी जगह आइनागर अपनी जगह

बाग़ में कैसे गुज़ारें पुर—मसर्रत ज़िन्दगी
बाग़बाँ का खौफ़ और गुलचीं का डर अपनी जगह

मेरी कश्ती की रवानी देखकर तूफ़ान में
पड़ गए हैं सख़्त चक्कर में भँवर अपनी जगह

है अयाँ आशार से मेरे मेरा सोज़—ए—दुरून
मेरी आहे आतशीं है बेअसर अपनी जगह

हाल—ए—दिल किसको सुनायें कोई सुनता ही नहीं
अपनी धुन में है मगन वो चारागर अपनी जगह

अश्कबारी काम आई कुछ न 'बर्क़ी'! हिज्र में
सौ सिफ़र जोड़े नतीजा था सिफ़र अपनी जगह

बहरे रमल(२१२२ २१२२ २१२२ २१२ )

संपर्क:

aabarqi@gmail.com

DR.AHMAD ALI BARQI AZMI

598/9, Zakir Nagar, Jamia Nagar

New Delhi-11025
अब तक प्रकाशित शायरों की सूची.
Aaj kee GHazal
• डा.अहमद अली वर्की की ग़ज़लें और परिचय
7/19/2008
25 दिसंबर 1954 को जन्मे डा. अहमद अली 'बर्क़ी'…
• देवमणि पांडेय की ग़ज़लें और परिचय
7/8/2008
परिचय: 4 जून 1958 को सुलतानपुर (उ.प्र.) में जन्मे…
• प्राण शर्मा की दो ग़ज़लें.
7/1/2008
परिचय:13 जून 1937 को वज़ीराबाद (अब पकिस्तान में) जन्मे…
• कृश्न कुमार 'तूर' जी की ग़ज़लें
6/23/2008
परिचय: 11 अक्तूबर 1933 को जन्मे जनाब—ए—कृश्न कुमार 'तूर'…
• श्री सरवर आलम राज़ 'सरवर'
6/12/2008
'सरवर' 16 मार्च 1935 को मध्य प्रदेश में जन्मे…
• श्री सुरेश चन्द्र 'शौक़' जी की ग़ज़लें
6/5/2008
परिचय 5 अप्रैल, 1938 को ज्वालामुखी (हिमाचल प्रदेश) में…
• ज़हीर कुरैशी जी की ग़ज़लें..
5/27/2008
परिचय: जन्म तिथि: 5 अगस्त,1950 जन्मस्थान: चंदेरी (ज़िला:गुना,म.प्र.) प्रकाशित…
• श्री बृज कुमार अग्रवाल जी की ग़ज़ल व परिचय
5/14/2008
परिचय 46 वर्षीय श्री बृज कुमार अग्रवाल (आई. ए. एस.)…
• पवनेन्द्र ‘ पवन ’ की दो ग़ज़लें और परिचय
5/5/2008
परिचय नाम: पवनेन्द्र ‘पवन’ जन्म तिथि: 7 मई 1945.…
• अमित "रंजन गोरखपुरी" की ग़ज़ल व परिचय
4/21/2008
परिचय: उपनाम- रंजन गोरखपुरी वस्तविक नाम- अमित रंजन चित्रांशी…
• दीपक गुप्ता जी का परिचय और ग़ज़ल
4/10/2008
उम्र: 36 साल शिक्षा: बी.ए.(1994) निवास: फ़रीदाबाद (हरियाणा) पहली…
• देवी नांगरानी जी की एक ग़ज़ल और परिचय
4/9/2008
परिचयजन्म- 11 मई 1949 को कराची में शिक्षा- बी.ए.…
• कवि कुलवंत जी की एक ग़ज़ल
3/31/2008
नाम : कवि कुलवंत सिंह जन्म: 1967 उतरांचल(रुड़की) शिक्षा:…
• डा. प्रेम भारद्वाज जी की तीन ग़ज़लें
3/28/2008
डा. प्रेम भारद्वाज जन्म: 25 दिसम्बर ,1946. नगरोटा बगवाँ…
• द्विज जी की पांच ग़ज़लें
3/17/2008
पाँच ग़ज़लें 1.यह ग़ज़ल रमल की एक सूरत.फ़ायलातुन, फ़ायलातुन,फ़ा…
• मेरे गुरु जी का परिचय और उनकी ग़ज़लें
3/15/2008
नाम: द्विजेन्द्र ‘द्विज’ पिता का नाम: स्व. मनोहर शर्मा‘साग़र’…

मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” भाग 2

मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” भाग 2
महावीर
July 22, 2008
मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” भाग 2
Filed under: प्राण शर्मा, महावीर शर्मा, सामान्य/General — महावीर @ 12:02 am
मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” भाग 2

आदरणीय प्रधान जी, कवियों, कवियत्रियों और श्रोतागण को आपके सेवक (महावीर शर्मा) और श्री प्राण शर्माजी का नमस्कार।
‘बरखा-बहार’ पर १५ जुलाई २००८ के मुशायरे का अभी भी ख़ुमार बाक़ी है। आज जो गुणवान कवि और कवियत्रियां अपना अमूल्य समय देकर रचनाओं से इस कवि-सम्मेलन की शोभा बढ़ा रहे हैं, उन्हें मैं विनम्रतापूर्वक प्रणाम करता हूं। आप सभी श्रोताओं का हार्दिक स्वागत है।
श्री महावीर जी का मैं बहुत आभारी हूं जिन्हों ने कवि सम्मेलन में शामिल कर, अहमद अली ‘बर्क़ी’ आज़मी, देवमणि पांडेय, द्विजेन्द्र ‘द्विज’, समीर लाल ‘समीर’, पारुल, रज़िया अकबर मिर्ज़ा, डॉ. मुंजु लता, नीरज गोस्वामी, राकेश खंडेलवाल, नीरज त्रिपाठी, रंजना भाटिया ‘रंजू’, सतपाल ‘ख़्याल’ जैसे गुणी कवियों और कवियत्रियों के साथ पढ़ने का सुनहरा मौक़ा दिया है।

यहां यह कहना उचित होगा कि यह कवि-सम्मेलन हमारे यू.के. के प्रितिष्ठित कवि, लेखक, समीक्षक और ग़ज़लकार श्री प्राण शर्मा जी की ही प्रेरणा और सुझाव से आयोजित किया किया गया है जिनका मार्गदर्शन पग-पग पर मिलता रहा है। आप ग़ज़ल की दुनिया में एक जाने माने उस्ताद हैं।


(वाह! वाह! के साथ तालियों से हॉल गूंज उठा है।)
***
आज हमें बेहद खुशी है कि हमारे दरमियान जनाब डॉ. अहमद अली बर्क़ी आज़मी साहेब मौजूद हैं। आपको शायरी का फ़न विरसे में मिला है। आप मशहूर शायर जनाब बर्क़ साहेब के बेटे हैं जो जनाब नूह नारवी के शागिर्द थे। जनाब नूह नारवी साहेब दाग़ देहलवी के शागिर्द थे।
डॉ. बर्क़ी साहेब ने फ़ारसी में पी.एच.डी. हासिल की है और आजकल ऑल इंडिया रेडियो में ऐक्स्टर्नल सर्विसिज़ डिवीज़न के पर्शियन (फ़ारसी) सर्विस में ट्रांस्लेटर/अनाउंसर/ब्रॉडकास्टर की हैसियत से काम कर रहे हैं। आप का तआरुफ़ आज की ग़ज़ल
में देखा जा सकता है।
मैं जनाब डॉ. अहमद अली ‘बर्क़ी’ साहेब से दरख़्वास्त करता हूं कि माइक पर आकर अपने कलाम से इस मुशायरे की शान बढ़ाएं :
जनाब अहमद अली ‘बर्क़ी’:

खिल उठा दिल मिसले ग़ुंचा आते ही बरखा बहार
ऐसे मेँ सब्र आज़मा है मुझको तेरा इंतेज़ार
आ गया है बारिशोँ मेँ भीग कर तुझ पर निखार
है नेहायत रूह परवर तेरी ज़ुल्फ़े मुश्कबार
जलवागाहे हुस्ने फितरत है यह दिलकश सबज़ाज़ार
सब से बढकर मेरी नज़रोँ मे है लेकिन हुस्ने यार
ज़िंदगी बे कैफ है मेरे लिए तेरे बग़ैर
गुलशने हस्ती मेँ मेरे तेरे दम से है बहार
है जुदाई का तसव्वुर ऐसे मेँ सोहाने रूह
आ भी जा जाने ग़ज़ल मौसम है बेहद साज़गार
ग़ुचा वो गुल हंस रहे हैँ रो रहा है दिल मेरा
इमतेहाँ लेती है मेरा गर्दिशे लैलो नहार
साज़े फ़ितरत पर ग़ज़लख़्वाँ है बहारे जाँफेज़ा
क़ैफ़—ओ— सरमस्ती से हैँ सरशार बर्क़ी बर्गो बार
(श्रोतागण खड़े होकर तालियों से ‘बर्क़ी’ साहेब के धन्यवाद और दाद का इज़हार कर रहे हैं।)
जनाब डॉ. बर्क़ी साहेब आपकी शिरकत के लिए हम सभी तहे दिल से ममनून और शुक्रगुज़ार हैं। उम्मीद है कि आगे होने वाले मुशायरों में भी आपकी राहनुमाई मिलती रहेगी।
***
“छ्म छम छम दहलीज़ पे आई मौसम की पहली बारिश
गूंज उठी जैसे शहनाई मौसम की पहली बारिश”

Barkha Bahaar

Saturday, June 28, 2008

आज इंटर्नेट पे है हर चीज़ का दारो मदार

आज इंटर्नेट पे है हर चीज़ का दारो मदार
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी

खोले हैँ इंफ़ार्मेशन टेक्नोलोजी ने ये द्वार
आज इंटर्नेट पे है हर चीज़ का दारो मदार
हो गए हैँ बुद्धिजीवी और लेखक हाईटेक
व्यक्त करते हैँ ब्लागस्पाट पर अपने विचार
लिख रहा है लेख अपने ब्लागवाणी पर कोई
है किसी को सिर्फ बस चिट्ठाजगत पर एतबार
लेखकोँ मे बढ रहा है अब ब्लागिंग का चलन
पाठकोँ को रहता है हर वक्त इसका इंतेज़ार
आधुनिक युग मेँ यह है प्रचार का साधन नया
विश्व मेँ है अब ब्लागिंग एक उत्तम कारोबार
हो प्रदूषण की समस्या या ग्लोबल वार्मिंग
सामयिक विषयोँ पे मैँ भी व्यक्त करता हूँ विचार
है सशक्त अभिव्यक्ति का यह माध्यम अहमद अली
इस लिए मैँने किया है आज इसको अख़्तेयार

Friday, June 20, 2008

आज ग्रसित है प्रदूषण से हमारा वर्तमान

आज ग्रसित है प्रदूषण से हमारा वर्तमान
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
है प्रदूषण की समस्या राष्ट्रव्यापी सावधान
कीजिए मिल जुल के जितनी जल्द हो इसका निदान
है गलोबलवार्मिंग अभिषाप अन्तर्राष्ट्रीय
इससे छुटकारे की कोशिश कार्य है सबसे महान
हो गई है अब कयोटो सन्धि बिल्कुल निष्क्रिय
ग्रीनहाउस गैस है चारोँ तरफ अब विद्यमान
आज विकसित देश क्यूँ करते नहीँ इस पर विचार
विश्व मेँ हर व्यक्ति को जीने का अवसर है समान
हर तरफ प्राकृति का प्रकोप है चिंताजनक
ले रही है वह हमारा हर क़दम पर इम्तेहान
पूरी मानवता तबाही के दहाने पर है आज
इस से व्याकुल हैँ निरन्तर बच्चे बूढे और जवान
ग्रामवासी आ रहे हैँ अब महानगरोँ की ओर
है प्रदूषण की समस्या हर जगह बर्क़ी समान

Monday, June 16, 2008

Poetic Tribute To Maulana Ziauddin Islahi,Director, Darul Musannefin, Azamgarh On His sad Demise


طوفان نرگسToofan e Nargis

طوفان نرگس
آج ماینمار ھے طوفان نرگس کا شکار
ھے گلوبل وارمنگ کا اس پہ یہ بھرپور وار
کیجئے راہ عمل مل جل کے کوئی اختیار
ورنہ آتے ھی رھینگے یہ حوادث بار بار
ھو گئے برباد لاکھوں ھیں ھزاروں لاپتہ
لوٹنے کا لوگ جن کے کر رھے ھیں انتظار
جا بجا بکھرے ھوئے ھیں ھر طرف لاشوں کے ڈھیر
بچ گئے ھیں جو انھیں ھے اب مدد کا انتظار
یہ ھے فطرت کے توازن کے بگڑنے کا عمل
آ رھا ھے ایک طوفان حوادث بار بار
کوئی پیمان کیوٹو پر نھیں کرتا عمل
ان مسائل کے لئے ھے نوع انساں ذمہ دار
اب بھی گر سوچا نہ اس آغاز کے انجام پر
آج ماینمار ھے کل ھوگا اس کا ھم پہ وار
پھلے ریٹا آیا پھر کٹرینا اور نرگس نے آج
کردیا ھے دامن انسانیت کو تار تار
آج ھے درکار ان کو بین الاقوامی مدد
جو ھیں ماینمار میں طوفان نرگس کے شکار
آج ھیں ھر ملک کو درپیش ایسے سانحے
پھلے بنگلادیش تھا سیلاب و طوفاں کا شکار
ھر طرح کا ھے پلوشن باعث سوحان روح
اس سے بچنے کی کریں تدبیر فورا اختیار
وقت کی ھے یہ ضرورت آج اے احمد علی
رکھیں فطرت کے توازن کو ھمیشہ برقرار

Friday, May 30, 2008

NASA'S PHOENIX SPASECRAFT ON MARS

NASA'S PHOENIX SPACECRAFT ON MARS

नासा का फोनिक्स स्पेस क्राफ्ट मंगल ग्रह पर NASA'S PHOENIX SPACECRAFT ON MARS

नासा का फोनिक्स स्पेस क्राफ्ट मंगल ग्रह पर
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ज़ाकिर नगर , नई दिल्ली-110025
भेज कर फोनिक्स को मिर्रीख़ पर बा आबोताब
हो गया अपने मिशन मेँ आज नासा कामयाब
अब से बत्तिस साल पहले था वहाँ स्पेस क्राफ्ट
सन छिहत्तर मेँ हुई थी पहली कोशिश कामयाब
है नेहायत शादो ख़ुर्रम आज जे पी एल की टीम
है यह उसका एक मिसाली कारनामा लाजवाब
है यह तहक़ीक़े समावी का मिशन तारीख़साज़
तीसरी कोशिश हुई है आज जिसकी कामयाब
है यह सरगर्दाँ तलाश ज़िंदगी मेँ अब वहाँ
जैसे ता हद्दे नज़र सहरा मेँ हो कोई सोराब
हैँ मुसख़्खर इब्ने आदम के लिए माहो नुजूम
जिसका है क़ुरआन मेँ वाज़ह इशारा बेहिजाब
है सितारोँ से भी आगे एक जहाने बेकराँ
अहले दानिश कर रहे हैँ आज जिसको बेनिक़ाब
है यह एक अहमद अली साइंस का औजे कमाल
जिस से है बर्पा जहाँ मेँ एक ज़ेहनी इंक़ेलाब

Saturday, May 24, 2008

پیشگفتار

پیشگفتار
دارالمصنفین کی تاریخی خدمات
خدمات دارالمصنفین بھ تاریخ
بقلم
دکتر محمد الیاس الاعظمی
مترجم : د کتر احمد علی برقی اعظمی

دارالمصنفین حسن خاتمہ زندگانی عظیم ملی، تحقیقی، تاریخی و مذھبی علا مہ شبلی و تعبیر حقیقی اندیشہ ھای عالی و آرمانھای اوست۔ اگرچہ این رویای او د ر زندگانی اش بہ حقیقت نپیوست و بتحقق نرسید و مرحلھ ظھور و نشو و نمایش در دورہ آغاز خود بودہ کھ او رخت از این جھان فانی بر بستہ رھسپار منزل جاودانی شدہ جان بہ جان آفرین سپرد۔ بھر حال پس از درگذ شت او تلامذہ خاص و وابستگانش این نقشہ علمی و فکری شبلی رابر حسب رنگ آرمانھای مورد علاقہ اش پر کردند۔ بخصوص مولانہ سید سلیمان ندوی دارالمصنفین را با استعداد علمی بی مانند و مساعی حسنہ اش بہ اوج اعتلای خود رساند۔ او ھمیشہ این حقیقت امر را د ر نظر می داشت کہ پیشرفت ھای ھمہ جانبہ ای ملل وابستہ بہ رفعت خیال و اصلاح می باشند و این فقط اھل قلم شایستہ ھستند کہ می توانند افکار ملک و ملت را د گرگوں می سازند۔ ھد ف تاسیس دارالمصنفین ھمین بود لذا او بوسیلہ دارالمصنفین تربیت اھل علم و قلم را مورد توجہ ویژہ ای قرار داد و سر انجام تعداد قابل ملاحظہ ای ازنویسندگان بر حسب توجہ و تربیت این ادارہ سرشناس بوجود آمد۔
دارالمصنفین از بدو تاسیسش تابحال یک د ورہ ھفتاد و پنج سالہ اش را پشت سر گذ راندہ و در حال حاضر ھم ھمین طور از لحاظ تربیت ذھنی و فکری و تصنیفی یکی از بزرگترین ادارہ ھای مسلمانان این شبہ قارہ می باشد۔
علامہ شبلی از مد ت مدیدی خیال تاسیس دارالمصنفین را بخاطر داشتہ و این را برای اولین بار در ماہ مارس سال یک ھزارو نہ صد و دہ در اجلاس ندوتھ العلماء در دھلی در ضمن لزوم کتبخانہ ندوہ بہ زبان آورد۔ در این اجلاس مولانا سید سلیمان ند وی ھم با توصیہ علامہ شبلی دربارہ لزوم کتبخانہ در ساختمان جدید دارالعلوم سخنرانی نمودہ بہ صراحت پیشنھاد دار المصنفین را ارائہ نمودہ کہ ازاینقرار است:
``لزومی وجود دارد کہ بعلاوہ کتبخانہ یک تالار وسیع برای اھل قلم
و مصنفین بنا شود کہ در آن جماعتی از قوم بتواند بہ تالیف و تصنیف
بپردازد۔ زبان مادری کہ مھد و پرورشگاہ دورہ طفولیتش ھمین دھلی
است بوسیلہ تصنیفات شان رو بہ پیشرفت بہ نھد۔ من این امر رامناسب
می دانم کہ ارباب قلم و مصنفین کہ تعداد قابل ملاحظہ ای شان در ھند
وجود دارد ھزینہ ھایش را بطور یادگار از جیب شان تامین نمایند و نام
این ساختمان دارالمصنفین باشد۔``( حیات شبلی ص 692 )
سپس در سال ھزار و نھصد و دہ نواب سر مزمل خان بہ شادمانی تقدیم خطاب دولتی با ارسال نامہ ای باطلاع علامہ شبلی رساند کہ من می خواھم کہ بیادگار تصنیفات تان اتاقی را در دارالعلوم بسازم۔ علامہ مرحوم بپاسخ آن در ماھنامہ الندوہ ( در ماہ اوت سال ھزار و نھصد و دہ) یاد داشتی نوشتہ آرمانش را اینچنین بازگو نمود:
`` ما میخواھیم کہ در دارالعلوم ساختمانی بنام دارالمصنفین تاسیس بشود
کہ در آن ادارہ ای در بارہ تصنیف و تالیف وجود داشتہ باشد و از آن
بطور مرتب تصانیف بچاپ برسند۔ مصنفین خارجی اگر بخواھند در آن
بسر ببرند و برای آنھا ھمہ وسایل راحت بخش و کتابھای مورد لزوم
علوم وفنون مھیا بشوند۔ چون کتابخانہ ندوہ بصورت یک کتابخانہ بسیار
عالی در آمدہ و افراد طبقہ تعلیم یافتہ ندوہ گرایش عمیق بہ تصنیف و
تالیف دارند بنا بر این پیشنھاد دارالمصنفین از ھر لحاظ شایستہ خواھد
بود ۔ لذا ما از نواب مزمل خان درخواست می کنیم کہ این مبلغ پول خود
را بمنظور تامین این ھد ف واگذار نمایند۔`` (حیات شبلی ص 692-693 )
ھنوز این پروژہ تحت رسیدگی قرار داشتہ کہ در ندوتہ العلماء مخالفت شبلی آغاز شد و بالآخر از آن آزردہ خاطر شدہ علامہ شبلی مستعفی شد و اینطورپیشنھاد دارالمصنفین ھم نتوانست بتکمیل برسد و ندوہ از یک ثروت عظیم محروم شد۔
علامہ شبلی پس از استعفایش از ندوہ مجد دا بہ طراحی تاسیس پروژہ دارالمصنفین پرداخت و آن را بعنوان آخرین میدان عمل زندگانی اش وخدمت دایمی حلقہ مصنفین دانستہ دست بکار شد و در شمارہ یازدھم فوریہ سال ھزارو نھصدو چھاردہ ``الھلال`` پیشنھاد دارالمصنفین را بحضور ملت ارائہ نمود۔اگرچہ این دورہ زندگانی اش برای علامہ شبلی خیلی پر آشوب بودہ و بعلاوہ مخالفین ندوہ و درگذ شت برادرش ( مولوی محمد اسحق، وکیل دادگاہ عالی) مسایل شخصی و خانگی و ھمچنین خرابی صحت و امثال آنھا برایش باعث آلام و مصائب شدید بود۔ باوجود آن انتشار پیشنھاد دارالمصنفین و اھتمام آن مظھر گرایش عمیق او بہ این کار می باشد۔او این اعلامیہ را بزبان انگلیسی برگرداندہ وشروع بہ ارسال نامہ ھای مفصل حاکی از وضاحت اغراض و مقاصد آن بہ احباب خاص و دانشوران دیگر نمود۔ مسئلہ ای کہ در پیش قرار داشتہ این بود کہ دارالمصنفین در کجا تاسیس بشود۔ مولانہ مسعود علی ندوی می خواست کہ این در ندوہ احداث بشود۔ علامہ شبلی نیز در آغاز ھمین می خواست۔او بپاسخ نامہ ای از مولانہ مسعود علی ندوی می نویسد کہ :
``برادر عزیز آنھا چطور بمن اجازہ تاسیس دارالمصنفین بہ ندوہ خواھند داد۔
آرزوی حقیقی من ھمین است ولی چہ کنم اگرچہ این بنفع آنھااست۔( مکاتیب
شبلی حصہ دوم )127)

مولانا حبیب الرحمن خان شیروانی ، حبیب خاص علامہ شبلی پیشنھاد تاسیس دارالمصنفین بہ وطن مالوفش حبیب گنج نمود ولی او بپاسخ این پیشنھاد نوشت کہ :
`` شما می خواھید کہ دارالمصنفین را بہ حبیب گنج ببرید۔ جنابعالی من چرا
پیشنھاد اعظم گر نکنم۔ من می توانم باغ خودم و دو بنگلہ ام را عرضہ نمایم``
(مکاتیب شبلی ج دوم ص 193 )
بالآخر پس از حیص و بیص ابتدائی قرعہ فال را بنام اعظم گر زدند و برایش علامہ شبلی باغ و بنگلہ شخصی اش را با رضایت افراد خانوادہ اش برای دارالمصنفین وقف نمود۔ ھنوز این وقف نامہ تھیہ می شد کہ این شخصیت سراپا علم و دانش بدعوت مالک حقیقی درحالیکہ کلمہ سیرت، سیرت بر زبانش جاری بود چشم از جھان فرو بست۔ انا للہ و انا الیھ راجعون۔
در ظرف سہ روز پس از درگذشت علامہ شبلی یعنی در تاریخ بیست و یکم نوامبر ھزار و نھصد و چھاردہ میلادی بدعوت مولانا حمید الدین فراھی و بحضور مولانا سید سلیمان ندوی بمنظور تکمیل کارھای ناتمام علامہ شبلی یک مجلس موقتی بنام مجلس اخوان الصفا بریاست مولانا حمید الدین فراھی تشکیل یافت کہ در آن مولانا سید سلیمان ندوی سمت ناظم و مولانا عبد السلام ندوی ، مولانا مسعود علی ندوی و مولانا شبلی متکلم ندوی عضویت آن را بعھدہ گرفتند۔ مولانا سید سلیمان ندوی کہ در آن زمان در دانشکدہ دکن سمت پروفسور را بعھدہ داشتہ از آنجا مستعفی شدہ بہ اعظم گر رسید، مولانا عبد السلام ندوی کلکتہ را ترک گفتہ رھسپار اعظم گر شد و مولانا مسعود علی ندوی ھم باتفاق این دو نفر از احباب خود تصمیم گرفت زندگانی باقی ماندہ اش را در پھلوی آرامگاہ شبلی بسر ببرد۔ ھمین مجلس موقتی اخوان الصفا ء گویا نقطہ آغاز دارالمصنفین می باشد۔ این جماعت مختصر دارالمصنفین باوجود بی سروسامانی اش عازم منزل مقصود شد۔ آھستہ آھستہ سید سلیمان ندوی جمعی از تلامذہ شبلی و فضلاء ندوہ را وابستہ بہ دارالمصنفین نمود۔ تد وین``سیرت نبوی``، سیر الصحابہ، تاریخ اسلام، تاریخ ھند و تاریخ علوم و فنون سر آغاز تصنیف و تالیف بود۔ با تاسیس چاپخانہ در سال ھزارو نھصد و شانزدہ اجراء ماھنامہ معارف بعمل آمد، ساختمان ادارہ و کتبخانہ بوجود آمد و گویا با پیوستگی اھل قافلہ کاروانی تشکیل یافت۔
ھد ف زندگانی علامہ شبلی ھمین بود کہ بحضور خود و بعد از آن گروھی از علماء و فضلاء را پشت سر بگذارد کہ در این عصر جدید احتیاجات جدید اسلام را تامین نماید۔ چنانچہ بمنظور بتحقق رساندن ھمین ھد ف
دارالمصنفین بطور منظم اھداف بشرح زیر را اعلام نمود:
1۔ استقرار جمعی از نویسندگان برجستہ در کشور
2۔ تصنیف و تالیف و ترجمہ کتابھای بلند پایہ
3۔ اھتمام چاپ و انتشارات کتابش و کتابھای علمی دیگر
در حال حاضر پس از مطالعہ سھم و خدمات برجستہ دارالمصنفین براستی می توان اعتراف نمود کہ دارالمصنفین بہ حصول اھدافش کاملا موفق شدہ است۔ تعداد قابل ملاحظہ ای بیشتر از پنجاہ نفر از نویسند گان و اھل قلم سرشناس و نامدار بہ آغوش آن پرورش یافتہ کہ صد ھا نفر از آنھا بہ اخذ تربیت علمی و قلمی نایل آمدہ اند۔
در پایان قرن بیستم اگر بہ دورہ گذشتہ نظر بافکنیم ، دامن وسیع زبان و اد بیات اردو از گلھای رنگ رنگ بعنوان رشک چمن بنظر می رسد و بدون ھیچ شک و تردید در آن حسین ترین ،دل انگیز ، معطر و پایدار ترین از ھمہ آنھا رنگ دبستان شبلی است کہ در این تمام ذخیرہ گل بعنوان گل سر سبد ھویداست۔
ھد ف اساسی دارالمصنفین تصنیف و تالیف و ترجمہ کتابھای ارزندہ ایست چنانچہ تابحال بیشتر از دویست کتاب بلند پایہ و بسطح عالی علمی و تحقیقی و تاریخی شدہ و بہ مد یریت انتشارات آن پرداختند و برای حصول
این آخرین ھدف دارالمصنفین چاپخانہ اش و مرکز انتشارات خود را تاسیس نمودہ است۔
دارالمصنفین فقط سازمانی نیست بلکہ یک تحریک زندہ و تابندہ و یک قلمرو علم و دانش است۔ با توجہ بہ سھم و خدمات متنوع و گوناگون برجستہ اش بہ علم و ادب ،تحقیق و نقد و تاریخ و تمد ن لزومی وجود داشتہ کہ تاریخ مفصل و مبسوط آن برشتہ تحریر در آوردہ می شد ولی متاسفانہ این بطور شایانی مورد توجہ قرار نگرفت۔ اگرچہ در بارہ علامہ شبلی و مولانا سید سلیمان ندوی کا ر تحقیقی بعمل آمدہ است کہ در آن ضمنا و طبعا ذکری از دارالمصنفین بمیان آمدہ است و این حامل حیثیت فرعی است۔ راجع بہ دارالمصنفین نیز مقالات تحقیقی عمدہ برشتہ تحریر در نیاوردہ شدہ کہ از آن جملہ میتوان مقالہ تحقیقی دکتر خورشید نعمانی در بارہ ``خدمات ادبی دارالمصنفین `` را می توان مثتثنی قرار داد۔ ولی آن ھم جنبہ ای از آن یعنی خدمات ادبی اش را بازگو می کند۔ بمنظور جبران این کمبود بزرگ اینجانب با وجود کم مایگی خود م خدمات دارالمصنفین بہ تاریخ را بعنوان موضوع تحقیق خود برگذ یدم۔ ظاھرا این ھم یک بر رسی جزئی است ولی اگر این حقیقت امر را در نظر بگیریم کہ درحقیقت ھنر تاریخ نویسی و مطعلقات آن موضوع اساسی و مرکزی دارالمصنفین است ، این امر واضح خواھد شد کہ این فقط یک مطالعہ جزئی نیست بلکہ در آن تفصیل سرمایہ کل دارالمصنفین در بر گرفتہ شدہ است۔
من تا چہ اندازہ ای موفق بہ ادای حق این موضوع شدہ ام قضاوت آن بعھدہ صاحبنظران می باشد۔ بھر حال میخواھم عرض بکنم کہ تا آنجا کہ ممکن است سعی نمودہ ام از عھدہ ایفاء حق این موضوع بر آیم۔
این مقالہ مشتمل بر ھفت باب می باشد۔ در باب اول آغاز تاریخ نویسی اردو ارتقاء تدریجی عھد بہ عھد آن و کتب تاریخی ماقبل شبلی و سبک تاریخ نویسی مورد بر رسی قرار گرفتہ است۔ در ابواب دوم،سوم، چھارم و پنجم بترتیب کارنامہ ھای تاریخی شبلی نعمانی، سید سلیمان ندوی، مولانا شاہ معین الدین ندوی و صباح الدین عبد الرحمان کہ آفتاب و ماھتاب سپھر تاریخ بودہ ، بطور مفصل مورد تحقیق و تحلیل و تجزیہ قرار گرفتہ است۔ از بررسی این ابواب و مباحث آن یک نقشہ واضح سھم و خدمات کامل دارالمصنفین ھویداست، علیرغم آن نمی توان ادعا نمود کہ آنچہ کہ در این کتاب برشتہ تحریر د ر آمدہ ، حرف آخر است۔ در جھان تحقیق و تدقیق حرف آخر اصلا وجود ندارد۔ لذا از اھل علم ودانش خواھشمندیم کہ صرفنظر از ھر گونہ فروگذاشت با اطلاعات جدید راھنمای اینجانب بشوند تا این مقالہ بتواند ھر چہ بیشتر مفید تر و بھتر بشود۔
دکتر محمد الیاس الاعظمی





Monday, May 19, 2008

है गलोबल वार्मिंग अहदे रवाँ मेँ एक अज़ाब

है गलोबल वार्मिंग अहदे रवाँ मेँ एक अज़ाब
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी

है गलोबल वार्मिंग अहदे रवाँ मेँ है अज़ाब
जाने कब होगा जहाँ से इस बला का सद्देबाब
ग्रीन हाउस गैस से महशर बपा है आज कल
जिस की ज़द मेँ आज है ओज़ोन का फितरी हेजाब
लर्ज़ा बर अंदाम है नौए बशर इस ख़ौफ़ से
इस कै मुसतक़बिल मेँ नकसानात होँगे बेहिसाब
हो न जाए मुंतशिर शीराज़ए हस्ती कहीँ
आई पी सी सी ने कर दी यह हक़क़त बेनेक़ाब
बाज़ आऐँगे न हम रेशादवानी से अगर
बर्फ़ के तूदे पिघलने से बढेगी सतहे आब
इस से फ़ितरत के तवाज़ुन मेँ ख़लल है नागुज़ीर
अर्श से फरशे ज़मीँ पर होगा नाज़िल एक एताब
ज़ेह्न मे महफ़ूज़ है अब तक सुनामी का असर
साहिली मुल्कोँ मे है जिसकी वजह से इज़तेराब
ऐसा तूफ़ाने हवादिस अल अमानो अल हफ़ीज़
नौए इंसाँ खा रही है जिस से अब तक पेचो ताब
हो सका अब तक न पैमाने कयोटो का नेफ़ाज़
है ज़रूरत वक़्त की अपना करेँ सब एहतेसाब
आइए अहमद अली बर्क़ी करेँ तजदीदे अहद
हम करेँगे मिल के बर्पा एक ज़ेहनी इंक़ेलाब

है प्रदूषण की ज़रूरी रोक थाम

है प्रदूषण की ज़रूरी रोक थाम
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी

है प्रदूषण की ज़रूरी रोक थाम
सब का जीना कर दिया जिसने हराम
आधुनिक युग का यह एक अभिशाप है
जिस पे आवश्यक लगाना है लगाम
है कयोटो सन्धि बिल्कुल निष्क्रिय
है ज़रूरी जिसका करना एहतेराम
अब बडे शहरोँ मेँ जीना है कठिन
ज़हर का हम पी रहे हैँ एक जाम
है प्रदूषित हर जगह वातावरण
काम हो जए न हम सब का तमाम
बढ़ रहा है दिन बदिन ओज़ोन होल
है ज़ुबाँ पर हर किसी की जिसका नाम
है गलोबल वार्मिंग का सब को भय
लेती है प्राकृकि से जो इंतेक़ाम
आज मायंमार है इसका शिकार
कल न जाने हो कहाँ यह बेलगाम
इसका जारी हर जगह प्रकोप है
हो नगर अहमद अली या हो ग्राम

Wednesday, May 7, 2008

तूफाने नर्गिस

तूफाने नर्गिस
आज मायंमार है तूफाने नर्गिस का शिकार
है गलोबल वार्मिंग का उसपे यह भरपूर वार
कीजिए राहे अमल मिल जुल के कोई अख़तेयार
वरना आते ही रहैँगे यह हवादिस बार बार
हो गए बरबाद लाखोँ हैँ हज़ारोँ ला पता
लौटने का लोग जिनके कर रहे हैँ इंतेज़ार
जा बजा बिखरे हुए हैँ हर तरफ लाशोँ के ढेर
बच गए हैँ जो उन्हेँ है अब मदद का इंतेज़ार
है यह फिरत के तवाज़ुन के बिगडने का अमल
आ रहा है एक तूफाने हवादिस बार बार
क्यूँ बिगडता जा रह है संतुलन परा्कृति का
लोग करते ही नहीँ इस बात पर कोई विचार
क्योँ कयोटो सन्धि पर करता नहीँ कोई अमल
इन मसायल के लिए है नैए इंसाँ ज़िम्मेदार
अब भी गर सोचा न इस आग़ाज़ के अंजाम पर
आज मायंमार है कल होगा इसका हमपे वार
पहले रीटा आया,फिर कटरीना और नर्गिस ने आज
कर दिया है दामने इंसानियत को तार तार
आज है दरकार उनको बैनुलअक़वामी मदद
जो हैँ मायंमार मेँ तूफ़ाने नर्गिस के शिकार
आज हैँ हर मुल्क को दरपेश ऐसे सानहे
पहले बंगलादेश था सैलाबो तूफ़ाँ का शिकार
हर तरह का है पलूशन बाइसे सोहाने रूह
इस से बजने की करेँ तदबीर फ़ौरन अख़तेयार
वक़्त की है ज़रूरत आज ऐ अहमद अली
रखेँ फितरत के तवाज़ुन को हमेशा बरक़रार
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ज़ाकिर नगर, नई देहली-110025

Monday, May 5, 2008

है आलूदगी नौए इंसाँ की दुश्मन

है आलूदगी नौए इंसाँ की दुश्मन
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी

सोलो प्वाइज़न है फ़ज़ा मेँ पलूशन
हर एक श़ख़्स पर यह हकीक़त है रोशन
युँही लोग बे मौत मरते रहैँ गे
न होगा अगर जल्द इस का सलूशन
बडे शहर हैँ ज़द मेँ आलूदगी की
जो हस्सास हैँ उनको है इससे उलझन
फ़ज़ा मेँ हैँ तहलील मस्मूम गैसेँ
है महदूद माहौल मेँ आकसीजन
जिधर देखिए कार्बन के असर से
है मायल ब पज़मुर्दगी सहने गुलशन
किसी को दमा है किसी को इलर्जी
मुकद्दर हवा से किसी को है टेंशन
जवानोँ के आसाब पर है नक़ाहत
बुज़र्गोँ की अब ज़िंदगी है अजीरन
कहाँ जाँएँ हम बच के आलूदगी से
कहीँ भी नहीँ चैन गुलशन हो या वन
कई यूनीयन कार्बाइड हैँ अब भी
जो दरपर्दा हैँ नौए इंसाँ के दुश्मन
शबो रोज़ आलूदगी बढ़ रही है
हैँ नदियाँ सरासर कसाफत का मख़्ज़न
जहाँ गर्म से गर्मतर हो रहा है
न हो जाए नौए बशर इस का ईँधन
है ओज़ोन भी ज़द मेँ आलूदगी की
जो है कुर्रए अर्ज़ पर साया अफगन
जो भरते हैँ दम रहबरी का जहाँ की
वह रहबर नहीँ दरहक़ीक़त हैँ रहज़न
कयोटो से करते हैँ ख़ुद चश्मपोशी
लगाने चले दूसरोँ पर हैँ क़दग़न
बनाते हैँ ख़ुद एटमी असलहे वह
समझते हैँ ख़ुद को मगर पाकदामन
सुनामी है उनके लिए दर्से इबरत
दिखाने चले हैँ जो फ़ितरत को दरपन
सलामत रवी का तक़ाज़ा यही है
छोडाएँ सभी इस मुसीबत से दामन
है अहमद अली वक़्त की यह ज़रूरत
बहरहाल अब सब पे नाफ़िज़ हो क़दग़न

हर कोई आलूदगी का है शिकार

हर कोई आलूदगी का है शिकार
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी

आज कल माहौल है नासाज़गार
हर तरफ है एक ज़ेहनी इंतेशार
है बडे शहरोँ मेँ जीना एक अज़ाब
हर कोई आलूदगी का है शिकार
आ रहे हैँ लोग शहरोँ की तरफ
गाँव का ना गुफ़तह बेह है हाले ज़ार
नित नए अमराज़ से है साबक़ा
पुर ख़तर है गर्दिशे लैलो नहार
आ रहा है जिस तरफ भी देखिए
एक तूफ़ाने हवादिस बार बार
बढ़ती जाती है गलोबल वार्मिंग
लोग हैँ जिस के असर से बेक़रार
है दिगर्गूँ आज मौसम का मिज़ाज
गर्दिशे हालात के हैँ सब शिकार
जिसको देखो बरसरे पैकार है
दामने इंसानियत है तार तार
है गलोबल वार्मिंग अहमद अली
एक मुसलसल कर्ब की आईना दार

Sunday, May 4, 2008

मीडिया

मीडिया
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ज़ाकिर नगर , नई देहली

मीडिया आज रखता है सब पर नज़र
काम है इसका निष्पक्ष देना ख़बर
ध्यान रखना ज़रूरी है इस बात का
इस के कवरेज का होता है गहरा असर
शक्तिशाली है आज इस क़दर मीडिया
मोड दे क़ौमी धारे को चाहे जिधर
है यह गणतंत्र का आज चौथा सुतूँ
रखता है सब को हालात से बाख़बर
आज है दाँव पर इस की निष्पक्षता
कर लेँ क़ब्ज़ा न इस पर कहीँ अहले ज़र
जिनका मक़्सद है सिर्फ अपना ही फ़यदा
चाहते हैँ बढाना वह अपना असर
कैसे अपनी बढाएँ वह टी आर पी
सिर्फ यह बात है उनके पेशे नज़र
कैसे आगे बढेँ गे बहुत जल्द वह
संसनीख़ेज़ ख़बरेँ न देँगे अगर
शायद उनको यह आभास हरगिज़ नहीँ
झूट की ज़िंदगी है बहुत मुख़्तसर
इस पे अंकुश ज़रूरी है अहमद अली
क्योँ कि है देश की स्मिता दाँव पर

Poetic Felicitation To A P J Abdul Kalam


फख़रे दौराँ ए पी जे अबदुल कलाम A P J Abdul Kalam

फख़रे दौराँ ए पी जे अबदुल कलाम
डा. अहमद अली बरक़ी आज़मी
598।9, ज़ाकिर नगर नई देहली

फ़ख़रे दौराँ ए पी जे अबदुल कलाम
जिनका है साइंस मेँ आला मुक़ाम
काम से हैं अपने वह हर दिल अज़ीज़
जिस से है सारे जहाँ में उनका नाम
मरदे मीज़ाइल हैँ वह इस मुलक में
हिंद का है जिस से तुज़को एहतेशाम
मुलको मिललत की तरककी के लिए
जारीयो सारी है है उनका फ़ैज़े आम
वक़फ कर दी जिंदगी साइंस पर
इस लिए हैँ लायक़े सद एहतेराम
उलके ज़ररीँ कारनामोँ के सबब
ज़ेबे तारीख़े जहाँ है उनका नाम
उनका है तनहा यही क़ौमी मिशन
जुमला अबनाए वतन होँ नेकनाम
अशहबे दौराँ की उनके हाथ मेँ
इलमो फ़ज़लो आगही से है लगाम
कारगाहे ज़िंदगी मेँ अहले हिंद
होँ हमेशा सुरख़रू और नेक नाम
है नमूना उनकी अमली ज़िंदगी
लायक़े ताज़ीम है उनका मुक़ाम
ख़ाकसारी का है पैकर उनकी ज़ात
करता है अहमद अली उन को सलाम

Saturday, May 3, 2008

आज है इंफ़ारमेशन टेकनालोजी की बहार

आज है इंफ़ारमेशन टेकनालोजी की बहार
डा.अहमद अली बरक़ी आज़मी,598।9, ज़ाकिर नगर
नई देहली-110025

आज है इंफारमेशन टेकनालोजी की बहार
कोई गूगल पर फिदा है कोई याहू पर निसार
कोई उरदुसतानो विककीपीडिया का है असीर
है किसी को सिरफ बस चिठठाजगत का इंतेज़ार
है बलाग इसपाट का गिरवीदह कोई और कोई
कर रहा है दूसरी वेबसाइटोँ पर इंहेसार
इंडिया टाइमस हो जीमेल हो, या हाटमेल
चल रहा है आई टी से आज सब का कारोबार
आज है साइंस पर हर चीज़ का दारोमदार
अब नई क़दरँ पे है अहले जहाँ का ऐतेबार
फ़ासले सब कर दिए हैँ ख़तम अब ई मेल ने
लोग आख़िर कयोँ करेँ अब नामह बर का इंतेजार
ज़िंदगी का कोई भी शोबा नहीँ इस से अलग
आज कमपयूटर पे है सारे जहाँ का इंहेसार
हो फिज़ाई टेकनोलोजी या निज़ामे कायनात
करते हैँ मालूम इस से गरदिशे लैलो नेहार
जानते हैँ लोग इस से कया है मौसम का मिज़ाज
कयोँ फ़िज़ा मेँ उड रहे हैँ हर तरफ गरदो ग़ुबार
इसका है मरहूने मिननत आज सारा मीडिया
जितने सेटलाइट हैँ सब का है इसी पर इंहेसार
है सभी सेटलाइटोँ का इस से पैहम राबता
वरलड वाइड वेब से है यह हर किसी पर आशकार
आज के युग मेँ यह है सब के लिए बेहद मुफ़ीद
पडती है इस की ज़रूरत हर किसी को बार बार
आई टी को आप भी अपनाइए अहमद अलीआज है इस के लिए माहौल बेहद साज़गार

Friday, May 2, 2008

इंटरनेट Topical Poetry by Dr.Ahmad Ali Barqi Azmi On The Relevance Of Internet & IT For Mankind

इंटरनेट

मुंहसिर है आज इंटरनेट पे दुनिया का निज़ाम
वकत के घोडे की है इसके ही हाथोँ मेँ लगाम
वरलड वाइड वेब मेँ सरवोततम है गूगल डाट काम
कर रहे हैँ आज सब उपयोग इसका ख़ासो आम
सब सवालोँ का तसलली बख़श देती है जवाब
इस लिए मशहूर है सारे जहाँ मेँ इसका नाम
हैँ रेडिफमेल और याहू भी नेहायत कारगर
और है चिठठाजगत का भी सभी पर फैज़े आम
है ज़ख़ीरा इलम का अनमोल विककीपीडिया
कर रहे हैँ फैज़ हासिल आज जिस से ख़ासो आम
हैँ वसीलह राबते का यह सभी वेबसाइटेँ
कर रही हैँ ख़िदमते ख़लक़े ख़ुदा जो सुबहो शाम
दूर और नज़दीक मेँ कुछ भी नहीँ है फ़ासला
चंद लमहोँ मेँ कहीँ भी भेज सकते हैँ पयाम
फारम भरना हो कोई या बुक कराना हो टिकट
आज इंटरनेट से है माक़ूल इसका इंतेज़ाम
रेडियो, अख़बार, टीवी, मीडिया अहले नज़र
इसतेफ़ादह कर रहे हैँ आज इस से ख़ासो आम
है मददगार आज यह साइंस की तहक़ीक़ मेँ
टेकनालोजी मेँ भी इस से ले रहे हैँ लोग काम
कारवाँ तहक़ीक़ का जब तक रहे गा गामज़न
काम आएगा मुसलसल इसका हुसने इंतेज़ाम
हैँ यह वेबसाइट ज़रूरत वक़त की अहमद अली
इस लिए अहले नज़र करते हैँ इनका एहतेमाम

पोलियो Topical Urdu Poetry On "POLIO" By Dr.Ahmad Ali Barqi Azmi

पोलियो
पोलियो की है ज़रूरी रोक थाम
कीजिए बर वक़त इसका इंतेज़म
तंदुरुसती का है ज़ामिन यह डराप
इस लिए लाज़िम है इसका एहतेमाम
है यह बचचोँ के लिए जामे सेहत
तंदुरुसती की एलामत है यह जाम
है गर दरकार हिफ़ज़ाने सेहत
इस मिशन को कीजिए लोगोँ मेँ आम
क़ौम के मेमार हैँ बचचे यही
मुलक का जो कल सँभालेँ गे निज़ाम
है ज़रूरी इन की ज़ंहनी तरबियत
इन मेँ शायद हो कोई अबदुल कलाम
है नमूना जिस का किरदारो अमल
है ज़बाँ पर हर किसी की जिसका नाम
शायद इन मेँ कोई सर सययद भी हो
जिस का जारी आज तक है फैज़े आम
है अली गढ जिस काम मैदाने अमल
मुलक का रौशन किया है जिस ने नाम
कोई शायद हो हकीम अबदुल हमीद
जिस का है हमदरद एक नक़शे दवाम
था जो अपने आप मेँ एक अंजुमन
ख़िदमते ख़लक़े ख़ुदा था जिलका काम
जामिया हमदरद है इस का सबूत
इसतेफ़ादह कर रहे हैँ ख़ासो आम
हर कि ख़दमत करद ऊ मख़दूम शुद
ज़ात पर सादिक़ है उनकी यह कलाम
पोलियो दर असल है सोहाने रूह
इस का होगा कब न जाने एख़तेताम
हो सका इस का न अब तक सददेबाब
है यह बरक़ी एक इबरत का मोक़ाम

डा. अहमद अली बरक़ी आज़मी
598।9, ज़ाकिर नगर,नई देहली-110025

Topical Urdu Poetry On "POLIO"پولیو کی ھے ضروری روک تھام





ایڈز کا کس طرح ھوگا سد باب Topical Urdu Poetry On "AIDS" By Dr.Ahmad Ali Barqi Azmi





एडॅस Topical Urdu Poetry On AIDS

एडॅस
है जहाँ मे एक मुसलसल इज़तेराब
एडॅस का किस तरह होग सददेबाब
है यह बीमारी अभी तक ला इलाज
खा रहे हैँ लोग जिस से पेचो ताब
आज कल जो लोग हैँ इस के शिकार
ज़िंदगी है उनकी गोया एक अज़ाब
अपनी ला इलमी से अबनाए वतन
कर रहे हैँ उन से पैहम इजतेनाब
दर हक़ीक़त है यह एक मोहलिक मरज़
जिस से हैँ ख़तरात लाहक़ बे हिसाब
जिसमोँ जाँ मेँ है तवाज़ुन लाज़मी
कीजिए ऐसा तरीक़ा इंतेख़ाब
हो न पैदा इन मेँ कोई एख़तेलाल
जो भी करना है हमेँ कर लेँ शेताब
होते ही कमज़ोर जिसमानी निज़ाम
रूह मेँ होता है पैदा इज़तेराब
सलब हो जाती है क़ुवत जिसम की
देने लगते हैँ सभी आज़ा जवाब
रफता रफता आता है ऐसा ज़वाल
जिसम खो देता है अपली आबो ताब
माहरीने तिब हैँ सरगरमे अमल
ता कि इसका कर सकेँ वह सददेबाब
जिस तरह टी बी थी पहले लाइलाज
आज है उस का तदारुक दसतयाब
इस का भी मिट जऐगा नामो निशाँ
एक न एक दिन तीरगी छट जाऐगी
दूर हो जाऐगा ज़ुलमत का सहाब
कीजिए हुसने अमल अहमद अली
है ज़रूरी एक ज़ेही इंक़ेलाब

डा.आर. के. पचौरी, चेयरमैन आई पी सी सी को नोबेल पुरसकार मिलने पर


डा.आर. के. पचौरी, चेयरमैन आई पी सी सी को नोबेल पुरसकार मिलने पर
राजेनदर. के. पचौरी का बहद अहम है काम
नोबेल इनाम सुलह का है आज जिनके नाम
है एक़तेज़ाए वक़त पलूशन की रोक थाम
अहले जहाँ को आज है उनका यही पयाम
तंज़ीम उनकी रखती है माहौल पर नज़र
ख़तरे मेँ आज जिस से है यह आलमी निज़ाम
अहले जहाँ मेँ आज मुसलसल है इज़तेराब
उनकी रिपोरट जब से हुई हर किसी पे आम
मसमूम आज आबो हवा है कुछ इस तरह
सब पी रहे हैँ ज़हरे हेलाकत का एक जाम
इंसान ख़ुद है अपनी हलाकत का जिममेदार
नौएबशर से लेती है फ़ितरत यह इंतेक़ाम
कोई है क़हत और कोई सैलाब का शिकार
चारोँ तरफ है आज मसाएब का इज़देहाम
है आज सब के पेशे नज़र अपना ही मोफ़ाद
करता नहीँ है कोई कयोटो का एहतेराम
ख़ुशहाल ज़िंगदी है जो अहमद अली अज़ीज़
करना पडे गा अपनी हिफ़ज़त का इंतेज़ाम

डा. अहमद अली बरक़ी आज़मी
598।9,ज़ाकिर नगर,नई देहली-110025

Remembering Homi. J. Bhabhaहोमी. जे.भाभा


होमी. जे.भाभा Remembering Homi. J. Bhabha

होमी. जे.भाभा
होमी भाभा नाज़िशे हिंदोसताँ
मुलक के भे नामवर साइंसदाँ
कियोँ न हो अहले वतन को उनपे नाज़
हमको बख़शा एक नक़शे जावदाँ
भे वह दुनियाँ भर मेँ अपने काम से
ऐटमी साइंस के रूहे रवाँ
अपने अफकारो अमल से भे सदा
मादरे हिंदोसताँ के पासबाँ
थे जो अपने काम से हर दिल अज़ीज़
हो गऐ रुख़सत वह हम से नागहाँ
उनके हैँ मरहूने मिननत अहले हिंद
जा बजा हैँ जिनकी अज़मत के निशाँ
उनकी इलमी ज़िनदगी का शाहकार
आज हर अहले नज़र पर है अयाँ
उनके ही नक़शे कदम पर आज तक
गामज़न है इलमो फ़न का कारवाँ
हो रहे हैँ लोग जिस से मुसतफीद
पहले था वह ख़ारिज अज़ वहमों गुमाँ
जिनके थे असलाफ फख़रे रोज़गार
गरदिशे दौराँ उनहैँ लाई कहाँ
पहले हम थे जिनके मंज़ूरे नज़र
ले रहे हैँ वह हमारा इमतेहाँ
उनका फ़ैज़ाने नज़र अहमद अली
इलम का है एक गंजे शायगाँ

Thursday, May 1, 2008

KALPANA CHAWLA कलपना चावला


कलपना चावला KALPANA CHAWLA

कलपना चावला
हिंद की शान थी कलपना चावला
क़ाबिले क़द् जिसका रहा हौसला
जब ख़लाई मिशन पर रवाना हुई
तै किय़ा कामय़ाबी से हर मरहला
कर के अससी से ज़यादह अहम तजरबे
सात साइ़ंसदानो़ का यह क़ाफिला
जब ख़लासे ज़मीं पर रवाना हुआ
लौटते वक़त पेश आगया हादसा
जान दे करख़ला मे़ अमर हौ गई
है यह तारीख़ का एक अहम वाके़या
थी यकुम फिरवरी जब वह रुख़सत हुई
था क़ज़ा वो क़दर कायही फैसला
जब मनाते है़ सब लोग साइंस डे
पेश आया उसी माह यह हादसा
अहले करनाल तनहा न थे दमबखुद
जिस किसी ने सुना था वही ग़मज़दह
इस से मिलती है तहरीके म़ंज़िल रसी
है नहीं रायगां कोई भी सानेहा
कामयाबी की है शरते अववल यही
हो कभी कम न इ़ंसान का वलवलह
जाऐ पैदाइश उसकी थी जिस गांव में
पूछते हैं सभी लोग उसका पताता
तुम भी पड लिख के अब नाम रौशन करो
तै करो कामयाबी से हर मरहलह
सारी दुनिंयां में रहते हैं वह सुरखु़रू
आगे बङने का रखते हैं जो हौसला
कयंु नहीं हम को रग़बत है साइंस से
है हमारे लिए लमहए फिकरियह
ग़ौर और फिकर फितरत के असरार पर
है यही अहले साइंस का मशग़लह
माहो मिररीख़ जब तक है़ जलवा फेगन
ख़तम होगा न तहकीक़ का सिलसिला
आइए हम भी अपनांएं साइंस को
आज जो कुछ है सब है इसी का सिला
वक़त की यह ज़रूरत है अहमद अली
कर दिया ख़तम जिसने हर एक फासलह

SUNITA WILLIAMS सुनिता विलियम


सुनिता विलियम

सुनिता विलियम
सुनिता विलियम के ख़लाई तजरबे का मरहलह
और फिर नासा से उसकाएक मुसलसल राबतह
असरे हाज़िर में है यह साईंस का औजे कमाल
मुददतों करते रहैंगे लोग जिसका तज़करह
कुछ भी नामुमकिन नहीं है हो अगर अज़मे सफर
दरसे इबरत है हमारे वासते यह वाक़ेयह
जिन में है ज़ौके तजससुस और असरी आगही
उनका है शामो सहर तहकी़क फितरी मशग़लह
नौ दिसमंबर को रवानह वह हुई सूऐ फ़लक
लायक़े तहसीं है यह अज़मे सफर यह हौसलह
थी फ़ज़ा में नौ महीने तक वह सरगरमे अमल
कारनामह उसका यह है आज तक बेसाबक़ह
एक ज़ररीं बाब है तारीख़ का तेईस जून
कामयाबी से हुआ तकमील जब यह मरहलह
होंगे फितरत के बहुत से राज़ हम पर मुनकशिफ
अहले दानिश जब करेंगे इसका इलमी तजज़ियह
आ गया अटलांटिस ले कर ख़लाबाजोँ को साथ
अब मिले गा उनको उनकी कामयाबी का सिलह
अहदे हाज़िर मेँ है अब साइँस बेहद सूद मंद
आइऐ मिल जुल के हम भी यह करें अब फैसलह
हम भी अपनाँऐँगे इस को अहले मग़रिब की तरह
रुक नहीँ सकता कभी तहक़ीक़ का यह सिलसिलह
अहले मशरिक़ इलमोँ दाँनिश मेँ किसी से कम नहीँ
कमयाबी से किया सुनिता ने तै यह मरहलहदर हक़ीक़त है यह बरक़ी एक मिशन तारीख़साज़
सुनिता विलियम का सफर साँइंस का है मोजज़ह
डा. अहमद अली बरक़ी आज़मी, ज़ाकिर नगर, नई दिलली- 110025

Wednesday, April 30, 2008

गलोबल वारमिंग

गलोबल वारमिंग
आज सब की दुशमने जां है गलोबल वारमिंग
रोज़ो शब आतश बदामां है गलोबल वारमिंग
ज़द में हैं इसकी हमेशा आबो आतश ख़ाको बाद
आतशेसययालो सोज़ां है गलोबल वारमिंग
लोग क़बल अज़ वकत मरगे फ़ाजेआ के हैं शिकार
दासताने ग़म का उनवां है गलोबल वारमिंग
आई पी सी सी ने कर दी यह हक़ीक़त बेनेक़ाब
सब की बरबादी का सामां है गलोबल वारमिंग
गिरीन हाउस गैस का एख़राज रै सोहाने रुह
इंक़िलाबे नज़में दौराँ है गलोबल वारमिंग
बरफ के तूदे पिघलते जा रहे हैं मुसतक़िलएक हिलाक़त ख़ेज़ तूफाँ है गलोबल वारमिंग
एक तूफाने हवादिस आ रहा है बार बार
शामते आमाले इंसाँ है गलोबल वारमिंग
है परीशाँहाल हर ज़ीरूह इस से मुसतक़िल
दुशमने इंसानो हैवाँ है गलोबल वारमिंग
है दिगरगूँ आज कल हर वक़त मौसम का मिज़ाज
हर घडी एक खतरऐ जाँ है गलोबल वारमिंग
है ख़ेज़ाँ दीदह गुलिसताँ मुज़महिल हैं बरगो गुल
ग़ारते फसले बहाराँ है गलोबल वारमिंग
हर कोई जिसके असर से खा रहा है पेचो ताब
एक ऐसी आफते जाँ है गलोबल वारमिंग
जिसका पैमाने कयोटौ से ही होगा सददेबाब
इजतेमाई ऐसा नकसाँ है गलोबल वारमिंग
है ज़रूरत आलमी तहरीक की इस के लिऐ
सोज़ो साज़े बादो बाराँ है गलोबल वारमिंग
है अनासिर में तवाज़ुन बाइसे नज़मे जहाँ
साज़े फितरत पर ग़ज़लख़वाँ है गलोबल वारमिंग
जाए तो जाए कहाँ नौए बशर अहमद अली
जिस तरफ देखो नुमाँयाँ है गलोबल वारमिंग

Monday, April 28, 2008

कलपना चावला


कलपना चावला
हिंद की शान थी कलपना चावला
क़ाबिले क़द् जिसका रहा हौसला
जब ख़लाई मिशन पर रवाना हुई
तै किय़ा कामय़ाबी से हर मरहला
कर के अससी से ज़यादह अहम तजरबे
सात साइ़ंसदानो़ का यह क़ाफिला
जब ख़लासे ज़मीं पर रवाना हुआ
लौटते वक़त पेश आगया हादसा
जान दे करख़ला मे़ अमर हौ गई
है यह तारीख़ का एक अहम वाके़या
थी यकुम फिरवरी जब वह रुख़सत हुई
था क़ज़ा वो क़दर कायही फैसला
जब मनाते है़ सब लोग साइंस डे
पेश आया उसी माह यह हादसा
अहले करनाल तनहा न थे दमबखुद
जिस किसी ने सुना था वही ग़मज़दह
इस से मिलती है तहरीके म़ंज़िल रसी
है नहीं रायगां कोई भी सानेहा
कामयाबी की है शरते अववल यही
हो कभी कम न इ़ंसान का वलवलह
जाऐ पैदाइश उसकी थी जिस गांव में
पूछते हैं सभी लोग उसका पताता
तुम भी पड लिख के अब नाम रौशन करो
तै करो कामयाबी से हर मरहलह
सारी दुनिंयां में रहते हैं वह सुरखु़रू
आगे बङने का रखते हैं जो हौसला
कयंु नहीं हम को रग़बत है साइंस से
है हमारे लिए लमहए फिकरियह
ग़ौर और फिकर फितरत के असरार पर
है यही अहले साइंस का मशग़लह
माहो मिररीख़ जब तक है़ जलवा फेगन
ख़तम होगा न तहकीक़ का सिलसिला
आइए हम भी अपनांएं साइंस को
आज जो कुछ है सब है इसी का सिला
वक़त की यह ज़रूरत है अहमद अली
कर दिया ख़तम जिसने हर एक फासलह