एडॅस
है जहाँ मे एक मुसलसल इज़तेराब
एडॅस का किस तरह होग सददेबाब
है यह बीमारी अभी तक ला इलाज
खा रहे हैँ लोग जिस से पेचो ताब
आज कल जो लोग हैँ इस के शिकार
ज़िंदगी है उनकी गोया एक अज़ाब
अपनी ला इलमी से अबनाए वतन
कर रहे हैँ उन से पैहम इजतेनाब
दर हक़ीक़त है यह एक मोहलिक मरज़
जिस से हैँ ख़तरात लाहक़ बे हिसाब
जिसमोँ जाँ मेँ है तवाज़ुन लाज़मी
कीजिए ऐसा तरीक़ा इंतेख़ाब
हो न पैदा इन मेँ कोई एख़तेलाल
जो भी करना है हमेँ कर लेँ शेताब
होते ही कमज़ोर जिसमानी निज़ाम
रूह मेँ होता है पैदा इज़तेराब
सलब हो जाती है क़ुवत जिसम की
देने लगते हैँ सभी आज़ा जवाब
रफता रफता आता है ऐसा ज़वाल
जिसम खो देता है अपली आबो ताब
माहरीने तिब हैँ सरगरमे अमल
ता कि इसका कर सकेँ वह सददेबाब
जिस तरह टी बी थी पहले लाइलाज
आज है उस का तदारुक दसतयाब
इस का भी मिट जऐगा नामो निशाँ
एक न एक दिन तीरगी छट जाऐगी
दूर हो जाऐगा ज़ुलमत का सहाब
कीजिए हुसने अमल अहमद अली
है ज़रूरी एक ज़ेही इंक़ेलाब
Friday, May 2, 2008
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