है गलोबल वार्मिंग अहदे रवाँ मेँ एक अज़ाब
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी
है गलोबल वार्मिंग अहदे रवाँ मेँ है अज़ाब
जाने कब होगा जहाँ से इस बला का सद्देबाब
ग्रीन हाउस गैस से महशर बपा है आज कल
जिस की ज़द मेँ आज है ओज़ोन का फितरी हेजाब
लर्ज़ा बर अंदाम है नौए बशर इस ख़ौफ़ से
इस कै मुसतक़बिल मेँ नकसानात होँगे बेहिसाब
हो न जाए मुंतशिर शीराज़ए हस्ती कहीँ
आई पी सी सी ने कर दी यह हक़क़त बेनेक़ाब
बाज़ आऐँगे न हम रेशादवानी से अगर
बर्फ़ के तूदे पिघलने से बढेगी सतहे आब
इस से फ़ितरत के तवाज़ुन मेँ ख़लल है नागुज़ीर
अर्श से फरशे ज़मीँ पर होगा नाज़िल एक एताब
ज़ेह्न मे महफ़ूज़ है अब तक सुनामी का असर
साहिली मुल्कोँ मे है जिसकी वजह से इज़तेराब
ऐसा तूफ़ाने हवादिस अल अमानो अल हफ़ीज़
नौए इंसाँ खा रही है जिस से अब तक पेचो ताब
हो सका अब तक न पैमाने कयोटो का नेफ़ाज़
है ज़रूरत वक़्त की अपना करेँ सब एहतेसाब
आइए अहमद अली बर्क़ी करेँ तजदीदे अहद
हम करेँगे मिल के बर्पा एक ज़ेहनी इंक़ेलाब
Monday, May 19, 2008
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